लेप्रो-एंडोस्कोपिक रेंडेजवस नामक एक तकनीक का उपयोग करके निकाले पथरियॉं: मिरारोड के वॉक्हार्ट अस्पताल में हुआ इलाज
मुंबई – एक ६० वर्षीय महिला के पित्ताशय से १५० पत्थरों को निकालने में मिरा रोड स्थित वॉक्हार्ट अस्पताल के डॉक्टरों को सफलता हासिल हुई हैं। इस महिला के पित्ताशय में १० सालों सेयह पत्थर थे। अस्पताल के मिनिमल एक्सेस मेटाबोलिक सलाहकार और बॅरिएट्रिक सर्जन डॉ.राजीव मानेक ने नेतृत्व में गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट सलाहकार डॉ. प्रतीक टिबडेवाल, इंटरवेशनलकार्डिओलॉजिस्ट सलाहकार डॉ. आशीष मिश्रा, इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. अनिकेत मुळे,पल्मोनोलॉजिस्ट सलाहकार डॉ. संगीता चेकर, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ. रूपा मेपानी ने यह सर्जरीकी हैं। इनमें से कुछ पत्थर उसकी पित्त नली में चले गए थे, जिससे महिला को पीलिया हो गयाथा।मीरारोड में रहनेवाले शांती (बदला हुआ नाम) के पित्ताशय में पिछले 10 वर्षों से 150 पथरी थीं।उसे दर्द महसूस होता था लेकिन उन्होंने डॉक्टर की सहायता नही ली। मोटापा के साथ-साथमहिला उच्च रक्तचाप, मधुमेह, ब्रोन्कियल अस्थमा से पिडीत थी। इतना ही नही बल्कि उन्हेंपित्ताशय में संक्रमण हो गया जब पित्ताशय से कुछ पत्थर फिसलकर पित्त नली में चले गएजिससे पित्त प्रणाली में तीव्र संक्रमण हो गया और पीलिया हो गया। महिला की बिघडती सेहतको देखकर परिवारवालो ने उन्हें वॉक्हार्ट अस्पताल दाखिल किया।वॉक्हार्ट अस्पताल के मिनिमल एक्सेस मेटाबोलिक सलाहकार और बॅरिएट्रिक सर्जन डॉ. राजीवमानेक ने कहॉं की, “मरीज में पेट के ऊपरी हिस्से में तेज दर्द, पीठ तक दर्द, मतली और उल्टीजैसे लक्षण दिखाई दिए। उसकी आंखें पीली हो गई थीं। वैदयकीय जाचं में उन्हेंकोलेडोकोलिथियसिस के साथ एक्युट कोलेसीस्टाइटिस का निदान हुआ। प्रतिदिन अस्पताल केओपीडी में ३० से ६० वर्ष की उम्र की महिलाओं में पित्त पथरी की समस्या दिखाई देती हैं। इसकातुरंत इलाज नही करवाया तो पीलिया, पेटदर्द, लीवर में सूजन औऱ बुखार आ सकता हैं।’’डॉ. मानेक ने आगे कहॉं की, लीवर पित्त का उत्पादन करता है जो एक पाचक रस है। यह पित्तअस्थायी रूप से पित्ताशय में जमा रहता है। भोजन के दौरान पित्ताशय सिकुड़ जाता है और यहपित्त सामान्य पित्त नली से होकर छोटी आंत तक पहुंचता है जहां यह पाचन में सहायता करताहै। पित्ताशय से पथरी आम पित्त नली में खिसक जाती है जिससे पीलिया हो जाता है। इस मरीजमें जटिल शारीरिक चुनौतियों के कारण सामान्य पित्त नली को एंडोस्कोपिक रूप से कैन्युलेट नहींकिया जा सका और रुकावट से राहत नहीं मिल सकी। इसलिए पित्ताशय से पथरी निकालने केलिए लेप्रो-एंडोस्कोपिक रेंडेजवस नामक एक तकनीक का उपयोग किया गया। इस सर्जरी के बादमरीज की सेहत में सुधार देखकर उन्हें डिस्चार्ज दिया गया हैं।डॉ. मानेक ने कहॉं की, “लैप्रो-एंडोस्कोपिक रेंडेज़वस तकनीक कठिन पित्त नलिका के लिए एकप्रभावी बचाव तकनीक है। इससे मरीज का सामान्य एनेस्थीसिया के प्रति बार-बार संपर्क कम होजाता है। इसका फायदा यह है कि पेट पर छोटे-छोटे छेद करके पित्ताशय की पथरी को एक साथहटा दिया जाता है। यह प्रक्रिया ९० मिनट तक चलती है। यह मरीज को कई प्रक्रियाओं और पेटके बड़े घावों से बचाता है। समय पर उपचार न लेने से पित्ताशय में छेद, पित्ताशय मेंगैंग्रीन, सेप्सिस, बहु अंग विफलता और जीवन को जोखिम जैसी विभिन्न जटिलताएँ हो सकतीहैं।