वाराणसी। अयोध्या में धन, धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि सब कुछ था, फिर भी राजा दशरथ दुखी थे। चक्रवर्ती सम्राट का रुतबा था, लेकिन बच्चों के बिना घर आंगन सूना था। इधर श्री हरि विष्णु ने स्वयं अयोध्या में अवतार लेने की घोषणा कर दी थी। फिर क्या था। कल जो अकाशवाणी हुई थी वह आज सच साबित होनी ही थी, सो हुई। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला में दूसरे दिन शुक्रवार को प्रभु श्रीराम के जन्म के प्रसंग का मंचन किया गया।
काशीराज परिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह और उनके पुत्र अनिरुद्ध नारायण सिंह शाम पांच बजे हाथी पर सवार होकर अयोध्या पहुंचे। इसके साथ दूसरे दिन की लीला का शुभारम्भ हुआ। अयोध्या के राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ के पास पहुंचते हैं। उनसे अपने मन की व्यथा कहते हुए बिलख पड़ते हैं। कहते हैं कि उम्र का चौथापन आ गया, लेकिन कोई संतान न होने से मन बड़ा व्यथित और उदास रहता है। तब वशिष्ठ उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि पूर्व जन्म में तुम्हारा नाम मनु और कौशल्या का नाम सतरूपा था। तुम लोगों ने भगवन्त को अपना पुत्र होने का वर मांगा था। परमात्मा ने अपने अंशों समेत अवतार लेने का वर दिया है। धीरज रखो, तुम्हे चार पुत्र होंगे। वशिष्ठ की सलाह पर राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ करते हैं। अग्निदेव प्रकट होकर उन्हें एक हव्य सौंपकर उसे तीनो रानियों को बांटने को कहते हैं। दशरथ वैसा ही करते हैं।

प्रभु श्रीराम ने अयोध्या पर खुशियों की बरसात की। वह भी अकेले नहीं, तीन अन्य भाइयों के साथ। जब एक साथ चार बच्चों की किलकारियां किसी सूने घर आंगन में गूंजेगी तो प्रसन्नता होनी स्वाभाविक है। चतुर्भुज भगवान की विराट झांकी होती है। देवतागण और कौशल्या उनकी स्तुति करती हैं। श्रीराम कहते हैं कि तुमने हमारे जैसा पुत्र मांगा था उसे सत्य करने के लिए हम तुम्हारे घर में प्रकट हुए हैं। कौशल्या उनसे यह रूप छोड़ बाल लीला करने का आग्रह करती हैं। माता कौशल्या के आग्रह के बाद श्रीराम बाल रूप धारण कर रोने लगते हैं। अयोध्या में खुशियां छा जाती है। बैंड बजाए जाते है। बधाई गीत गाए जाते हैं। राजा दशरथ ब्राह्मणों को दान देते हैं। गुरु वशिष्ठ चारों बच्चों का नाम करण श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के रूप में करते हैं। चारों बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार होता है। गुरुकुल में शिक्षा सम्पन्न होती है। श्रीराम एक हिरण का शिकार करके राजा दशरथ को बताते हैं कि इसे मैंने मारा है। इसके बाद कौशल्या चारों भाइयों की आरती उतारती हैं। इसी के साथ दूसरे दिन की लीला को विश्राम दिया जाता है।